लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फ़ीसदीe आरक्षण देने वाला महिला आरक्षण विधेयक आज भी पारित होने का इंतज़ार कर रहा है.
इसमें महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित किए जाने की व्यवस्था है.
महिला सांसदों की गिनती
वर्ष 2004- 45
वर्ष 1999-49
वर्ष 1998- 43
वर्ष 1996-40
वर्ष 1989-29
वर्ष 1977-19
वर्ष 1962-31
हालत ये थी कि जब पहली बार इसे 11वीं लोक सभा में पेश किया गया था तो इसकी प्रतियाँ फाड़ी गई थीं.
भारतीय राजनीति में राष्ट्रीय और प्रादेशिक स्तर पर कई महिला राजनेताओं का दबदबा रहा है लेकिन एक कड़वी सच्चाई ये भी है कि मायावती, जयललिता या ममता बैनर्जी जैसी नेताओं को छोड़कर ज़्यादातर का नाता किसी न किसी राजनीतिक परिवार से ही रहा है.
इस बार जिन महिलाओं ने लोक सभा चुनाव में किस्मत आज़माई हैं उनमें शामिल है- सोनिया गांधी, दलित नेता चौधरी दलबीर सिंह की बेटी कुमारी शैलजा (अंबाला से), भटिंडा से सुखबीर सिंह बादल की पत्नी हरसिमरत कौर, चितौरगढ़ से गिरिजा व्यास, शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले, सुनील दत्त की बेटी प्रिया दत्त और, विदिशा से सुषमा स्वाराज और ममता बैनर्जी.
15वें लोक सभा चुनाव में करीब 480 महिलाएँ मैदान में रहीं. कई राज्यों में एक भी महिला प्रत्याशी नहीं थी हिमाचल जैसे राज्य में महिलाएँ हर मायने में काफ़ी सक्रिय मानी जाती हैं. लेकिन यहाँ किसी भी पार्टी ने महिलाओं को उम्मीदवार नहीं बनाया.
लेकिन इस सब के बीच उम्मीद की एक हल्की किरण कहीं कहीं नज़र आ रही है. मसलन हरियाणा जो अकसर बेहद कम लिंग अनुपात के लिए सुर्खियाँ बटोरता है. लेकिन इस बार वहाँ रिकॉर्ड 14 महिला उम्मीदवार थीं. 1967 में जब पहली बार हरियाणा में लोकसभा चुनाव हुए थे तो केवल एक महिला ने लोकसभा का चुनाव लड़ा था.
विभिन्न पार्टियों के घोषणापत्रों पर नज़र डालें तो ये मुद्दा ज़रूर शामिल होता है कि महिलाओं को राजनीति में और प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए ।
लेकिन ज़मीनी स्तर पर तब तक बदलाव नहीं आ सकता जब तक राजनीतिक इच्छा शक्ति और सामाजिक सोच में बदलाव के बूते पर ये बातें दस्तावेज़ों से निकलकर हकीकत नहीं बन जाती.
अभी बहुत ज़्यादा उम्मीद करना तो बेमानी होगा। इस दफ़ा तो देखना इतना है कि राजनीतिक पिच पर महिला सांसद अर्धशतक लगा पाती हैं या नहीं.
बीबीसी हिन्दी की reeport के अनुसार ............
pahle to aapka blog ki duniya mai swagat hai doosri baat mahila aarshan ka mudda bemani hai aap aisa karo ki log aapko pooche sorry is mudde par kabhi aur bat karenge
ReplyDeletemadam aapki mahila galat hai
ReplyDeleteआरक्षण की माँग करना अपने आप में यह साबित करता है कि हम अपने आप को कमजोर महसूस करते हैं।यह एक ऐसा राजनैतिक मीठा जहर है जो कि हमारे समाज खोखल किऐ जा रहा है।वास्तव में इस जहर को फैलाने वाले सभी राजनैतिक दल ही हैं जो अपनी कुर्सी के लिऐ नई-नई योजनाओं को परोसते रहते हैं और समाज में शांति से रह रहे लोगों के बीच दूरियां पैदा करना ही इनका उद्देश्य है ताकि वोट बैंक बनाया जा सके। तभी तो महिला आरक्षण की बात सभी करते हैं पर लागू नहीं करेंगे क्योंकि आरक्षण का लॉलीपाप केवल चुनावी मुद्दा है। यह आपको समझना होगा। वरना बिना कानून के ही सभी दल 33% महिलाओं को टिकिट क्यों नहीं दे देते...? कानून की जरूरत ही नहीं है भला कौन रोक रहा है उनको.....?
ReplyDeletebahut umda likha hai .
ReplyDeleteसिर्फ़ सत्ता सुख में भागीदारी चाहिए या असल में समाज में बराबरी के हालात....दोनों बातें अलग-अलग हैं और रास्ते भी अलग-अलग...
ReplyDeleteजो चुनाव लड़ना चाहते हैं या लड़ सकते हैं...जाहिर है वो आम दुनिया के लोग नहीं होते....अपवादों को छोड़ दीजिए...
सोच की अच्छी दिशा के लिए शुभकामनाएं...
हिंदी ब्लॉग की दुनिया में आपका तहेदिल से स्वागत है....
ReplyDeleteबहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
ReplyDeleteबात तो सही है.............पर इसका समाधान आरक्षण तो कतई ही नहीं है...........
ReplyDeleteबहुत सुंदर.हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं। मेरे ब्लोग पर भी आने की जहमत करें।
ReplyDeleteआरक्षण की बैसाखी थामकर मंजिल नहीं पाई जा सकती......
ReplyDeletewell done......
ReplyDeleteसब कह रहे है की आराछाद की बैसाखी न थामिए लकिन मै पूछता हूँ तो फिर हमारे देश की महिलाएं कहा जाए .....अच्छी सोच के बाद लिखा है आपने ये लेख लिखती रहिये ........
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