Saturday, May 16, 2009

"कब आएगा हमारा वक्त"

लोक सभा चुनाव के मतदान के बाद अब सभी पार्टियाँ राजीनिक जोड़-तोड़ में लगी हुई हैं. नतीजे क्या होंगे, किसकी झोली में कितनी सीटें जाएगी और कौन बनाएगा सरकार....सबको इसका इंतज़ार है.
इस सब के बीच ये देखना दिलचस्प होगा कि 15वीं लोक सभा में कितनी महिला सांसद अपनी उपस्थिति दर्ज करवा पाती हैं- क्या वे पचास का आँकड़ा पार कर पाएँगी?
पचास इसलिए क्योंकि राजनीतिक पिच पर अब तक के किसी भी लोकसभा चुनाव में महिला सांसद अर्धशतक नहीं बना पाईं हैं. महिला सांसदों की गिनती कभी 50 का आँकड़ा नहीं छू पाई.
2004 के लोक सभा चुनाव में 355 महिलाओं ने चुनाव लड़ा था जिनमें से 45 चुनी गईं यानी केवल 8.3 फ़ीसदी प्रतिनिधित्व.
1962 के बाद हुए लोकसभा चुनावों में से सबसे ज़्यादा महिलाएँ 1999 में चुन कर आई थीं- कुल 49 सासंद यानी अर्धशतक से एक कम.
पिछले आँकड़ों पर नज़र दौड़ाएँ तो (1984 को छोड़कर) 1996 से पहले हुए चुनावों में महिला सांसदों की गिनती 40 तक भी नहीं पहुँची थी. 1996 में 40 तो 1989 में 29 महिला सांसद चुनी गई थीं.
सबसे कम महिलाएँ 1977 में चुनी गई जब ये संख्या केवल 19 रह गई थी.
बीबीसी हिन्दी की एक reeport के अनुसार

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