Wednesday, May 20, 2009

अनवरत संघर्ष करती मुस्लिम महिला

महिला और समाज एक ऐसा सम्बन्ध दर्शाता है जो अपने आप मई अनोखा और गरिमापूर्ण है .महिला के आभाव मे समाज शब्द की कल्पना भी एकदम से बेमानी सी लगती है.वह शब्द जिसमे पुरी दुनिया समायी हुई है उस शब्द का यदि हम अर्थ न समझ सके उसकी पहचान न दे सके तो दूसरे सारे अर्थ निरर्थक है।
मेरा आशय नारी रूपी शब्द से है जिसके द्वारा इस विशाल समाज की सृष्टि होती है परन्तु इस बात की चिंता है की समाज की जन्मदाता इस नारी नमक अनमोल शख्सियत का कोई मोल नही है।
प्राचीन युग से ही जब से मुस्लिम समुदाय की उत्पत्ति हुई नारी की हालत बहुत ही दयनीय रही है.मुस्लिम समाज शुरू से ही नारी की भूमिका के प्रति उदासीन रहा है.इसका सबसे बड़ा उदाहरण मध्य युगं मे गुलामवंश के बादशाह इल्तुतमिश की बेटी रजियाबेगम का है जिसे कुलीन वर्गों ने केवल इस कारण उसकी हत्या करवा दिया क्यूँकि वह एक महिला सम्राज्ञी थी और एक नारी के अधीन रहना उनके शान के ख़िलाफ़ था।
वास्तव मे मुस्लिम समुदाय शुरू से ही संकुचित तथा संकीर्ण विचारधारा से ग्रसित रहा है। नारी शिक्षा की बात तो दूर रही वे तो नारी के पर्दानशीं के हिमायती थे.यह तो बहुत ही हास्यास्पद लगता है की जिस समाज मे पुरूष को तो एक से अधिक विवाह करने की इजाज़त है उसी समाज मई नारी केवल मनोरंजन का साधन मानी जाती है। और तब मथिलीशरण गुप्त की ये पंक्तिया बरबस ही याद आ जाती है ,
"अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी
आँचल मे है दूध आँखों मे पानी "

मुस्लिम समाज हमेशा से परदा प्रथा का हिमायती रहा है और आज भी है जिसका उदाहरण हमें प्रतिदिन आते जाते मिलता है हालाकि कुछ आधुनिक युग के नेता (मुस्लिम) नारी शिक्षा के पक्षधर रहे है जिसमे इराक के भूतपूर्व तानाशाह सहाय हुसैन भी है.उन्होंने मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा पर जोर दिया तथा उनके उत्थान की कोशिश भी की है।
आज भी इस आधुनिकता के काल मई मुस्लिम नारिया अपनी शिक्षा और अपनी सामाजिक स्थिति के लिए अनवरत संघर्ष कर रही है,परन्तु आज भी उनका बाहर निकलना पुरुषों के कंधे से कन्धा मिलकर चलना तथा अधिक शिक्षित होना दोनों एक विशिष्ट वर्ग को पसंद नहीहै .आतंकवादी गुटों ने तो एक बार फिर से नारी को आदि सभ्यता की तरफ़ धकेलने की कोशिश शुरू कर दी है । उन्होंने एक बार फिर इस समाज की महिलाओ की दशा दयनीय बना दिया है तथा उनकी शिक्षा पर रोक लगा दी है जिससे उनका भविष्य अधर मे लटक गया है। यह एक चिंता का विषय है न केवल मुस्लिम समाज के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए भी क्यूँकि नारी किसी समाज की आधार होती है और जब किसी ईमारत का आधार ही कमजोर होगा तो बुलंद ईमारत की सोच भी बेमानी होगी.

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