Friday, May 22, 2009

माँ तो बस माँ होती है

माँ शब्द कहने मात्र से मन में एक उमंग ,आनंद और प्रसन्नता की लहर दौड़ जाती है। माँ के ममत्व के समक्ष संसार के हर सुख ऐशो आराम व्यर्थ से प्रतीत होते है। माँ एक ऐसी शख्सियत होती है जो स्वयं दुःख सहकर बदले में बच्चो को फूलो का उपहार देती है। स्वयं दुःख को सहन करते हुए बच्चो के सुख की अभिलाषा करती है। स्वयं भूखे रहकर बच्चो के भोजन का प्रबंध करती है। माँ धरती के सामान हर दुःख दर्द को अपने सिने में दबा कर रहती है और मुख से उफ़ तक नही करती है। जब कभी भी बच्चो के ऊपर किसी प्रकार की विपत्ति आती है तो बच्चा अपने माँ के शीतल छाया को ही स्मरण करता है। और माँ के मातृत्व को प्राप्त कर ही उसे सुख की प्राप्ति होती है। माँ बच्चे को लाड भी करती है और समय पड़ने पर उसे दंड भी देती है बच्चे के हर अच्छे कार्य पर माँ को असीम आनंद आता है। माँ और बच्चे का अटूट सम्बन्ध है जिसे दुनिया की कोई ताकत तोड़ नही सकती बच्चा अगर बुरा होता है तो भी माँ बुरी नही होती संस्कृत के निम्न सूक्ति में सत्यार्थ का दर्शन होता है-

" पुत्रो कुपुत्रो जायते क्वचिदपि माता कुमाता न भवति। "

संतान के हर सुख में माँ सुखी होती है और हर दुःख में माँ दुखी होती है लेकिन अपवाद स्वरुप आज के युग में भी कुछ संतान ऐसे होते है जो माँ को भार स्वरुप बहन करते है उनकी किसी प्रकार की परवाह नही करते जो माँ स्वयं गीले में सोकर भी बच्चे को सूखे में सुलाकर बच्चे के सुख की अभिलाषा करती है संपूर्ण जीवन बच्चो के लिए समर्पित कर देती है.उफ़ उसी माँ को इतना अनादर, आज दस नौकर के भोजन का प्रबंध हो सकता है लेकिन माँ को भोजन देना भार स्वरुप प्रतीत होता है। माँ ही प्रथम पाठशाला की प्रथम गुरु है माँ ही बच्चो को अच्छे संस्कारो से युक्त करती है। इसलिए कहा भी गया है --------"जननी जन्मभूमिस्च स्वर्गादपि गरीयसी"

Wednesday, May 20, 2009

अनवरत संघर्ष करती मुस्लिम महिला

महिला और समाज एक ऐसा सम्बन्ध दर्शाता है जो अपने आप मई अनोखा और गरिमापूर्ण है .महिला के आभाव मे समाज शब्द की कल्पना भी एकदम से बेमानी सी लगती है.वह शब्द जिसमे पुरी दुनिया समायी हुई है उस शब्द का यदि हम अर्थ न समझ सके उसकी पहचान न दे सके तो दूसरे सारे अर्थ निरर्थक है।
मेरा आशय नारी रूपी शब्द से है जिसके द्वारा इस विशाल समाज की सृष्टि होती है परन्तु इस बात की चिंता है की समाज की जन्मदाता इस नारी नमक अनमोल शख्सियत का कोई मोल नही है।
प्राचीन युग से ही जब से मुस्लिम समुदाय की उत्पत्ति हुई नारी की हालत बहुत ही दयनीय रही है.मुस्लिम समाज शुरू से ही नारी की भूमिका के प्रति उदासीन रहा है.इसका सबसे बड़ा उदाहरण मध्य युगं मे गुलामवंश के बादशाह इल्तुतमिश की बेटी रजियाबेगम का है जिसे कुलीन वर्गों ने केवल इस कारण उसकी हत्या करवा दिया क्यूँकि वह एक महिला सम्राज्ञी थी और एक नारी के अधीन रहना उनके शान के ख़िलाफ़ था।
वास्तव मे मुस्लिम समुदाय शुरू से ही संकुचित तथा संकीर्ण विचारधारा से ग्रसित रहा है। नारी शिक्षा की बात तो दूर रही वे तो नारी के पर्दानशीं के हिमायती थे.यह तो बहुत ही हास्यास्पद लगता है की जिस समाज मे पुरूष को तो एक से अधिक विवाह करने की इजाज़त है उसी समाज मई नारी केवल मनोरंजन का साधन मानी जाती है। और तब मथिलीशरण गुप्त की ये पंक्तिया बरबस ही याद आ जाती है ,
"अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी
आँचल मे है दूध आँखों मे पानी "

मुस्लिम समाज हमेशा से परदा प्रथा का हिमायती रहा है और आज भी है जिसका उदाहरण हमें प्रतिदिन आते जाते मिलता है हालाकि कुछ आधुनिक युग के नेता (मुस्लिम) नारी शिक्षा के पक्षधर रहे है जिसमे इराक के भूतपूर्व तानाशाह सहाय हुसैन भी है.उन्होंने मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा पर जोर दिया तथा उनके उत्थान की कोशिश भी की है।
आज भी इस आधुनिकता के काल मई मुस्लिम नारिया अपनी शिक्षा और अपनी सामाजिक स्थिति के लिए अनवरत संघर्ष कर रही है,परन्तु आज भी उनका बाहर निकलना पुरुषों के कंधे से कन्धा मिलकर चलना तथा अधिक शिक्षित होना दोनों एक विशिष्ट वर्ग को पसंद नहीहै .आतंकवादी गुटों ने तो एक बार फिर से नारी को आदि सभ्यता की तरफ़ धकेलने की कोशिश शुरू कर दी है । उन्होंने एक बार फिर इस समाज की महिलाओ की दशा दयनीय बना दिया है तथा उनकी शिक्षा पर रोक लगा दी है जिससे उनका भविष्य अधर मे लटक गया है। यह एक चिंता का विषय है न केवल मुस्लिम समाज के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए भी क्यूँकि नारी किसी समाज की आधार होती है और जब किसी ईमारत का आधार ही कमजोर होगा तो बुलंद ईमारत की सोच भी बेमानी होगी.

Saturday, May 16, 2009

"संसद में महिला"


लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फ़ीसदीe आरक्षण देने वाला महिला आरक्षण विधेयक आज भी पारित होने का इंतज़ार कर रहा है.
इसमें महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित किए जाने की व्यवस्था है.
महिला सांसदों की गिनती
वर्ष 2004- 45
वर्ष 1999-49
वर्ष 1998- 43
वर्ष 1996-40
वर्ष 1989-29
वर्ष 1977-19
वर्ष 1962-31
हालत ये थी कि जब पहली बार इसे 11वीं लोक सभा में पेश किया गया था तो इसकी प्रतियाँ फाड़ी गई थीं.
भारतीय राजनीति में राष्ट्रीय और प्रादेशिक स्तर पर कई महिला राजनेताओं का दबदबा रहा है लेकिन एक कड़वी सच्चाई ये भी है कि मायावती, जयललिता या ममता बैनर्जी जैसी नेताओं को छोड़कर ज़्यादातर का नाता किसी न किसी राजनीतिक परिवार से ही रहा है.
इस बार जिन महिलाओं ने लोक सभा चुनाव में किस्मत आज़माई हैं उनमें शामिल है- सोनिया गांधी, दलित नेता चौधरी दलबीर सिंह की बेटी कुमारी शैलजा (अंबाला से), भटिंडा से सुखबीर सिंह बादल की पत्नी हरसिमरत कौर, चितौरगढ़ से गिरिजा व्यास, शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले, सुनील दत्त की बेटी प्रिया दत्त और, विदिशा से सुषमा स्वाराज और ममता बैनर्जी.
15वें लोक सभा चुनाव में करीब 480 महिलाएँ मैदान में रहीं. कई राज्यों में एक भी महिला प्रत्याशी नहीं थी हिमाचल जैसे राज्य में महिलाएँ हर मायने में काफ़ी सक्रिय मानी जाती हैं. लेकिन यहाँ किसी भी पार्टी ने महिलाओं को उम्मीदवार नहीं बनाया.
लेकिन इस सब के बीच उम्मीद की एक हल्की किरण कहीं कहीं नज़र आ रही है. मसलन हरियाणा जो अकसर बेहद कम लिंग अनुपात के लिए सुर्खियाँ बटोरता है. लेकिन इस बार वहाँ रिकॉर्ड 14 महिला उम्मीदवार थीं. 1967 में जब पहली बार हरियाणा में लोकसभा चुनाव हुए थे तो केवल एक महिला ने लोकसभा का चुनाव लड़ा था.
विभिन्न पार्टियों के घोषणापत्रों पर नज़र डालें तो ये मुद्दा ज़रूर शामिल होता है कि महिलाओं को राजनीति में और प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए
लेकिन ज़मीनी स्तर पर तब तक बदलाव नहीं आ सकता जब तक राजनीतिक इच्छा शक्ति और सामाजिक सोच में बदलाव के बूते पर ये बातें दस्तावेज़ों से निकलकर हकीकत नहीं बन जाती.
अभी बहुत ज़्यादा उम्मीद करना तो बेमानी होगा। इस दफ़ा तो देखना इतना है कि राजनीतिक पिच पर महिला सांसद अर्धशतक लगा पाती हैं या नहीं.


बीबीसी हिन्दी की reeport के अनुसार ............

"कब आएगा हमारा वक्त"

लोक सभा चुनाव के मतदान के बाद अब सभी पार्टियाँ राजीनिक जोड़-तोड़ में लगी हुई हैं. नतीजे क्या होंगे, किसकी झोली में कितनी सीटें जाएगी और कौन बनाएगा सरकार....सबको इसका इंतज़ार है.
इस सब के बीच ये देखना दिलचस्प होगा कि 15वीं लोक सभा में कितनी महिला सांसद अपनी उपस्थिति दर्ज करवा पाती हैं- क्या वे पचास का आँकड़ा पार कर पाएँगी?
पचास इसलिए क्योंकि राजनीतिक पिच पर अब तक के किसी भी लोकसभा चुनाव में महिला सांसद अर्धशतक नहीं बना पाईं हैं. महिला सांसदों की गिनती कभी 50 का आँकड़ा नहीं छू पाई.
2004 के लोक सभा चुनाव में 355 महिलाओं ने चुनाव लड़ा था जिनमें से 45 चुनी गईं यानी केवल 8.3 फ़ीसदी प्रतिनिधित्व.
1962 के बाद हुए लोकसभा चुनावों में से सबसे ज़्यादा महिलाएँ 1999 में चुन कर आई थीं- कुल 49 सासंद यानी अर्धशतक से एक कम.
पिछले आँकड़ों पर नज़र दौड़ाएँ तो (1984 को छोड़कर) 1996 से पहले हुए चुनावों में महिला सांसदों की गिनती 40 तक भी नहीं पहुँची थी. 1996 में 40 तो 1989 में 29 महिला सांसद चुनी गई थीं.
सबसे कम महिलाएँ 1977 में चुनी गई जब ये संख्या केवल 19 रह गई थी.
बीबीसी हिन्दी की एक reeport के अनुसार

Thursday, May 14, 2009

"अबला अब बर्दाश्त नही "

कल लोकतंत्रके महापर्व का अन्तिम दिन था । मै भी इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी, पर क्या कारों पत्रकार हूँ और ऊपर से महिला तो मुझे तो इस पूरे घटनाक्रम को समाज के विपरीत किनारे से देखना है । ........ क्या हम लड़कियों की यही स्थिति हमेशा रहेगी ????...................
चलिए चुनाव की ही बात करते है क्योंकि सबका मन आज कल उधर ही लगा हुआ है .......आप ही बताईये की कितनी राष्ट्रिय पार्टियों ने महिलाओं को पार्टी प्रत्याशी के रूप में उतारा । कही एक प्रत्याशी तो कही मुश्किल से दोआप हमारे जौनपुर को ही देख ले सिर्फ़ एक रास्ट्रीय पार्टी ने महिला प्रत्याशी को चुनावी मैदान में उतरा और वो दुसरे प्रत्याशियों को कड़ी टक्कर भी दे रही है । लेकिन कोई भी हम लड़कियों को आगे आने का मौका नही देना चाहता .....सब ये तो कहते है की हम महिलाओं को सामान अधिकार दिलाएंगे लकिन वो तो सिर्फ़ कागजी खानापूर्ति होती है । चुनाव जीतने के बाद सब कोई हम को भूल जाते है ।
अगर मै बात करू राजनीती में महिलाओं के योगदान की तो इंदिरा गाँधी से लेकर मायावती तक सभी देश के विकासमे अपना भरपूर सहयोग देती आरही है ,लकिन फिर भी हमें अबला का लकब दिया जाता है । आज भारात की राजनीती में महिलाओं का बहुत महत्वपुर्ण योगदान है पर इसे पबुध्जन मानने से इंकार करते है.. आप क्या कहेंगे इस बारे में ,आज भारत की राष्ट्रपति एक महिला है ,हमारे देश की सबसे बड़े राजनितिक दल की नेता महिला है ,देश के सबसे बड़े राज्य की मुख्य मंत्री महिला है फिर भी हमें ये अबला कहने से बाज़ नही आते है । भारत का राजनितिक पर्व अब समाप्त होने वाला है ,देश में सत्ता काजोड़े -तोडे शुरू हो जायेगी और ये सब जानते है की पार्टी उसी की सत्ता में आएगी जिसको दछिद भारतीय दल सहयोग देंगे ,जिसमे जयललिता ,ममता बनर्जी जैसे महिला नेताओं की अहम् भूमिका होगी । ...........

तो फिर आप ही बताईये हम अबला है.....या देश की कश्ती को खेने में सहयोग देने वाली पतवार का एक हिस्सा ......