Thursday, May 14, 2009

"अबला अब बर्दाश्त नही "

कल लोकतंत्रके महापर्व का अन्तिम दिन था । मै भी इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी, पर क्या कारों पत्रकार हूँ और ऊपर से महिला तो मुझे तो इस पूरे घटनाक्रम को समाज के विपरीत किनारे से देखना है । ........ क्या हम लड़कियों की यही स्थिति हमेशा रहेगी ????...................
चलिए चुनाव की ही बात करते है क्योंकि सबका मन आज कल उधर ही लगा हुआ है .......आप ही बताईये की कितनी राष्ट्रिय पार्टियों ने महिलाओं को पार्टी प्रत्याशी के रूप में उतारा । कही एक प्रत्याशी तो कही मुश्किल से दोआप हमारे जौनपुर को ही देख ले सिर्फ़ एक रास्ट्रीय पार्टी ने महिला प्रत्याशी को चुनावी मैदान में उतरा और वो दुसरे प्रत्याशियों को कड़ी टक्कर भी दे रही है । लेकिन कोई भी हम लड़कियों को आगे आने का मौका नही देना चाहता .....सब ये तो कहते है की हम महिलाओं को सामान अधिकार दिलाएंगे लकिन वो तो सिर्फ़ कागजी खानापूर्ति होती है । चुनाव जीतने के बाद सब कोई हम को भूल जाते है ।
अगर मै बात करू राजनीती में महिलाओं के योगदान की तो इंदिरा गाँधी से लेकर मायावती तक सभी देश के विकासमे अपना भरपूर सहयोग देती आरही है ,लकिन फिर भी हमें अबला का लकब दिया जाता है । आज भारात की राजनीती में महिलाओं का बहुत महत्वपुर्ण योगदान है पर इसे पबुध्जन मानने से इंकार करते है.. आप क्या कहेंगे इस बारे में ,आज भारत की राष्ट्रपति एक महिला है ,हमारे देश की सबसे बड़े राजनितिक दल की नेता महिला है ,देश के सबसे बड़े राज्य की मुख्य मंत्री महिला है फिर भी हमें ये अबला कहने से बाज़ नही आते है । भारत का राजनितिक पर्व अब समाप्त होने वाला है ,देश में सत्ता काजोड़े -तोडे शुरू हो जायेगी और ये सब जानते है की पार्टी उसी की सत्ता में आएगी जिसको दछिद भारतीय दल सहयोग देंगे ,जिसमे जयललिता ,ममता बनर्जी जैसे महिला नेताओं की अहम् भूमिका होगी । ...........

तो फिर आप ही बताईये हम अबला है.....या देश की कश्ती को खेने में सहयोग देने वाली पतवार का एक हिस्सा ......

2 comments:

  1. आपने महिलाओं के लिए आवाज़ तो उठाई है,लकिन कौन महिला आज इन सब झमेलों में फसना चाहती है । सभी चुनाव में जीतना तो चाहती है किंतु काम उनके भाई या पति या रिश्तेदार ही करते है ,वो तो घर और परिवार में परेशां रहती है .....

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